आज हम दौड़े जा रहे हैं, कहाँ जाना पता नहीं, लेकिन दौड़ जारी है। किसी दोस्त
से मिलने का तो पता ही नहीं है। बस फेसबुक एक सहारा है अपने पुराने
मित्रो से रूबरू होने का, थोड़ी ज्यादा घनिष्ठता हुई तो फ़ोन पर बात हो गयी।
अब वो जमाना बदल गया जब हम दोस्तों के यहाँ मिलने जाया करते थे और जो मजा
वहाँ रोटी सब्जी खाने में आता था , वो आजके मालपुए में भी नहीं मिलेगा,
क्योंकि हमें सुबह से शाम तक दौड़ लगानी है। किसी से पूछो कहेगा बिलकुल ही
समय नहीं है भाई,क्योंकि वो भी वैसे ही दौड़ रहे है जैसे की मैं।
दौड़ लगाने से मिलता क्या है इ म आई वाला घर , इ म आई वाला कार। चलो जिसने
ये खरीद लिया वो फिर इन कर्ज को चुकाने के लिए दौड़ता है और जिसने ये नहीं
लिया वो इन कर्ज वाले घर खरीदने के लिए दौड़ता है। सुकून किसी को नहीं है।
रिश्ते नाते भी अब पैसे के हिसाब से ही चलता है। अब पैसे वाले ही पैसे वाले
को पूछता है। अब कोई फ़ोन आपको तभी करेगा जब उसको आप की जरुरत होगी। वो
भाईचारा खत्म हो गया। शादी ब्याह भी अब एक दिन में निपट जाता है क्योंकि
सबको दौड़ना जो है। लेकिन ये दौड़ आखिर कब तक। अंत तो है ही नहीं। सुकून और
शांति जीवन में तभी आएगी जब आप अपने जीवन को परिभाषित कर लें। अन्यथा ये
जीवन व्यर्थ है। जिंदगी एक कमरे में भी गुजर सकती है और एक महल में भी। ये
आपको अपने काबिलियत के हिसाब से तय करना होगा की हमें क्या करना है और
कहाँ रहना है। आने वाली पीढ़ी तो मुझे लगता है की स्काईवे में चलेगी क्योंकि
उसे तो और तेज चलना होगा। आज से बीस साल पहले लोग ५० -५५ की उम्र में घर
बनाते थे, आज ३० साल में बना रहे है तो निःसंदेह आने वाली पीढ़ी २० की उम्र
में बनाएगी। सोचिये की हम कहाँ जा रहे है। अभी मधुमेह की बीमारी ३५-४० में
शुरू हो रही है बाद में २५ में शुरू हो जाएगी। मुझे लगता है की एक दिन ऐसा
आायेगा की लोग दौड़ने की जगह चलना शुरू कर देंगे , लेकिन शायद तब तक बहुत
देर हो जाएगी।
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